पूर्णिया: सीमांचल से एशिया और यूरोप जा रहा बफैलो मीट, 75 से 80 करोड़ डालर विदेशी मुद्रा कमा रही सरकार, दो कंपनियों को मिला लाइसेंस, टर्न ओवर 600 करोड़ पार

सरकार से लाइसेंस मिलने के बाद ही सीमांचल के दो बफैलो मीट प्रोसेसर के द्वारा यह कार्य किया जा रहा है। पूरा कार्य प्रदूषण मुक्त होता है। मीट के साथ कीन, बोन, ब्लड का भी इस्तेमाल किया जाता है।

पूर्णिया: सीमांचल से एशिया और यूरोप जा रहा बफैलो मीट, 75 से 80 करोड़ डालर विदेशी मुद्रा कमा रही सरकार, दो कंपनियों को मिला लाइसेंस, टर्न ओवर 600 करोड़ पार

बिहार के सीमांचल एरिया से बफैलो का मीट एशिया से यूरोप तक जा रहा है। वियतनाम सीमांचल के बफैलो मीट का सबसे बड़ा खरीदार है। यहां का बफैलो मीट विदेशों में काफी पसंद किया जा रहा है। सरकार के द्वारा लाइसेंस दिए जाने के बाद सीमांचल में दो बफैलो मीट प्रासेसिंग प्लांट चल रहे हैं। जो अररिया में है। जीएसटी पूर्णिया प्रमंडल के सहायक आयुक्त विवेकानंद झा के मुताबिक दोनों कंपनियों का टर्न ओवर 600 करोड़ से अधिक है। इससे विदेशी मुद्रा की कमाई हो रही है। फोरेन एक्सचेंज से करीब 75 से 80 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा की कमाई सरकार को हो रही है। बता दें कि भैंस के मांस के निर्यात में भारत की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। बिहार और यूपी से बफैलो मीट बहुतायत में विदेश जाता है। इसमें सीमांचल की भागीदारी काफी है। इस वक्त बफैलो मीट एक्सपोर्ट मार्केट में भारत ब्राजील से काफी आगे निकल गया है। विदेशी मुर्द्रा अर्न करने वाले दोनों एक्सपोर्टर को पिछले दिनों पूर्णिया जीएसटी प्रमंडल में सम्मानित भी किया गया था।

.ये हैं मुख्य बातें

● मेडिकल चेकअप के बाद फिट नहीं बताने पर ही भैंस का मीट तैयार किया जाता

● मीट तैयार कर लिफाफा और डब्बा में बंद कर रखा जाता है, जो पूरा फ्रोजेन रहता है

● सरकार की ओर से लाइसेंस दिए जाने के बाद सीमांचल में दो बफैलो मीट प्रासेसिंग प्लांट का किया जा रहा संचालन

फर्टिलाइजर के अलावा जूते और बैग भी बनते हैं

सरकार से लाइसेंस मिलने के बाद ही सीमांचल के दो बफैलो मीट प्रोसेसर के द्वारा यह कार्य किया जा रहा है। पूरा कार्य प्रदूषण मुक्त होता है। मीट के साथ कीन, बोन, ब्लड का भी इस्तेमाल किया जाता है। इससे फर्टिलाइजर भी तैयार किया जाता है। बकायदा लेदर से शूज और बैग वगैरा भी तैयार किए विदेशी मुद्रा बिहार जाते हैं।

बड़े चाव के साथ बफैलो मीट खाते हैं विदेशी

विदेशों में बफैलो मीट को बड़े चाव के साथ खाया जाता है। मीट प्रासेसर के द्वारा मीट तैयार करने में इसके हाइजीन का पूरा ध्यान रखा जाता है। साफ-सफाई के अलावा इसके लिए उचित तापमान जरूरी होता है। इसे तैयार कर लिफाफा और डब्बा में बंद कर रखा जाता है। मीट पूरा फ्रोजेन रहता है। मीट को कंटेनर के द्वारा विदेश भेजा जाता है।

दूध नहीं देने पर बेकार भैंस से मीट होता तैयार

कोसी और सीमांचल में तालाब और नदियां काफी हैं। यहां वाटर बफेलो की काफी संख्या है। लाखों भैंस हैं जो दूध नहीं देने के बाद बेकार हो जाती हैं। यह पशुपालकों के लिए भी सिरदर्द बन जाता है। ऐसे ही भैंस से मीट तैयार कर विदेशों को भेजा जाता है। बाकायदा डॉक्टर के द्वारा मेडिकल चेकअप के बाद फिट नहीं बताने पर ही भैंस का मीट तैयार किया जाता है।

Bihar: विदेशी मुद्रा में बढ़ोत्तरी करने के लिए पर्यटकों को मिले पीने की छूट, शराबबंदी से घटे पर्यटक

आईआरसीटीसी का कहना है कि बिहार में शराबबंदी की वजह से पयर्टकों की संख्या में कमी आई है। पर्यटकों को खाने-पीने की आजादी देनी होगी।

आईआरसीटीसी के ग्रुप एमडी अफसर जफर आजम ने कहा कि शराबबंदी की वजह से पर्यटन को नुकसान हो रहा है।

आईआरसीटीसी के ग्रुप एमडी अफसर जफर आजम ने कहा कि विदेशी मुद्रा बिहार शराबबंदी की वजह से पर्यटन को नुकसान हो रहा है। - फोटो : सोशल मीडिया

बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू किया था। जिसके बाद प्रदेश में शराब पीना और बेचना कानूनी अपराध है। लेकिन अब शराबबंदी में ढील देने और पर्यटकों को शराब पिलाने की व्यवस्था करने की मांग हुई है। यह मांग इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन(आईआरसीटीसी) की तरफ से की गई है।

शराब की वजह से घटी पर्यटकों की संख्या
आईआरसीटीसी का कहना है कि बिहार में शराबबंदी की वजह से पयर्टकों की संख्या में कमी आई है। पर्यटकों को खाने-पीने की आजादी देनी होगी। विदेशी पयर्टकों को उनके मुताबिक खाने-पीने की चीजें न मिलने की वजह से प्रदेश का रूख नहीं कर रहे है। आईआरसीटीसी का कहना है कि विदेशियों के साथ-साथ देश के पयर्टकों की संख्या में कमी आई है।

प्रदेश सरकार ने पर्यटकों को लेकर किया था यह दावा
बिहार सरकार ने दावा किया कि शराबबंदी की वजह से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। रेलवे का दावा बिलकुल उलट है। आईआरसीटीसी का कहना है कि पर्यटक शराबबंदी की वजह से नहीं आना चाहते हैं। पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने के लिए शराबबंदी कानून में ढील देनी होगी।


विदेशी मुद्रा बढ़ाने के लिए भी पांबदी हटानी जरुरी
आईआरसीटीसी के ग्रुप एमडी जफर आजम ने कहा कि सरकार पर्यटन की वजह से हजारों करोड़ों डॉलर कमा सकती है। शराबबंदी की वजह से पर्यटक नहीं आना चाहता है। सरकार को विदेशी पर्यटकों को खींचने के लिए ब्लू प्रिंट विदेशी मुद्रा बिहार पर काम करना होगा। केवल बिहार ही देश का ऐसा राज्य है, जहां हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख धर्मों के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। जफर आजम ने बताया कि कई देशों के पर्यटकों के बातचीत की गई है। उन्होंने कहा कि विदेशी बिहार आना चाहते है, लेकिन उन्हें उनके खाने-पीने की चीजें नहीं मिल पाती है। उन्होंने बताया कि पर्यटकों का कहना है कि सारनाथ, वैशाली, गया, बोधगया आदि जगह वो घूमना चाहते है।

विस्तार

बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू किया था। जिसके बाद प्रदेश में शराब पीना और बेचना कानूनी अपराध है। लेकिन अब शराबबंदी में ढील देने और पर्यटकों को शराब पिलाने की व्यवस्था करने की मांग हुई है। यह मांग इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन(आईआरसीटीसी) की तरफ से की गई है।

शराब की वजह से घटी पर्यटकों की संख्या
आईआरसीटीसी का कहना है कि बिहार में शराबबंदी की वजह से पयर्टकों की संख्या में कमी आई है। पर्यटकों को खाने-पीने की आजादी देनी होगी। विदेशी पयर्टकों को उनके मुताबिक खाने-पीने की चीजें न मिलने की वजह से प्रदेश का रूख नहीं कर रहे है। आईआरसीटीसी का विदेशी मुद्रा बिहार कहना है कि विदेशियों के साथ-साथ देश के पयर्टकों की संख्या में कमी आई है।

प्रदेश सरकार ने पर्यटकों को लेकर किया था यह दावा
बिहार सरकार ने दावा किया कि शराबबंदी की वजह से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। रेलवे का दावा बिलकुल उलट है। आईआरसीटीसी का कहना है कि पर्यटक शराबबंदी की वजह से नहीं आना चाहते हैं। पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने के लिए शराबबंदी कानून में ढील देनी होगी।


विदेशी मुद्रा बढ़ाने के लिए भी पांबदी हटानी जरुरी
आईआरसीटीसी के ग्रुप एमडी जफर आजम ने कहा कि सरकार पर्यटन की वजह से हजारों करोड़ों डॉलर कमा सकती है। शराबबंदी की वजह से पर्यटक नहीं आना चाहता है। सरकार को विदेशी पर्यटकों को खींचने के लिए ब्लू प्रिंट पर काम करना होगा। केवल बिहार ही देश का ऐसा राज्य है, जहां हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख धर्मों के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। जफर आजम ने बताया कि कई देशों के पर्यटकों के बातचीत की गई है। उन्होंने कहा कि विदेशी बिहार आना चाहते है, लेकिन उन्हें उनके खाने-पीने की चीजें नहीं मिल पाती है। उन्होंने बताया कि पर्यटकों का कहना है कि सारनाथ, वैशाली, गया, बोधगया आदि जगह वो घूमना चाहते है।

बिहार : बफैलो मीट से 80 करोड़ डालर विदेशी मुद्रा कमा रही सरकार

यहां का बफैलो मीट विदेशों में काफी पसंद किया जा रहा है। सरकार के द्वारा लाइसेंस दिए जाने के बाद सीमांचल में दो बफैलो मीट प्रासेसिंग प्लांट चल रहे हैं। जो अररिया में है। जीएसटी पूर्णिया प्रमंडल के सहायक आयुक्त विवेकानंद झा के मुताबिक दोनों कंपनियों का टर्न ओवर 600 करोड़ से अधिक है। इससे विदेशी मुद्रा की कमाई हो रही है। फोरेन एक्सचेंज से करीब 75 से 80 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा की कमाई सरकार को हो रही है। बता दें कि विदेशी मुद्रा बिहार भैंस के मांस के निर्यात में भारत की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। बिहार और यूपी से बफैलो मीट बहुतायत में विदेश जाता है। इसमें सीमांचल की भागीदारी काफी है। इस वक्त बफैलो मीट एक्सपोर्ट मार्केट में भारत ब्राजील से काफी आगे निकल गया है। विदेशी मुर्द्रा अर्न करने वाले दोनों एक्सपोर्टर को पिछले दिनों पूर्णिया जीएसटी प्रमंडल में सम्मानित भी किया गया था।

यहां विदेशी पैसों से आई समृद्धि, जानिए बिहार के एक शहर का खाड़ी कनेक्शन

पटना [ प्रमोद पांडेय ]। सिवान की जब भी चर्चा शुरू होती है, बाहर के लोग इसकी पहचान अपराध और राजनीति से ही मानते हैं। बेशक हाल के दिनों में सिवान की यह पहचान बनी है पर यह तस्वीर का एक पहलू भर है। सिवान का दूसरा पहलू चमकदार है जिसकी चर्चा नहीं के बराबर या कम होती है। यह पहलू यहां के लोगों की मेहनत, यहां की मिट्टी से उनके लगाव और इलाके को समृद्ध करने के प्रयासों से जुड़ी है।

सिवान की बड़ी आबादी कई दशकों से खाड़ी के देशों में रह रही है। बाहर गए लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई से यहां की मिट्टी को सोना बनाने का जो संकल्प कभी लिया था वह अब यहां साफ दिखता है। संपन्नता यहां शहर की गलियों से लेकर गांव की पगडंडियों तक दिखती है। यह खाड़ी के पैसे का असर तो है ही, बाहर अपनी मेहनत से नाम कमा रहे लोगों की यहां की मिïट्टी के प्रति मोह को भी दर्शाता है।

गांवों के प्रति मोह बरकरार

दूसरे जिलों में जहां गांव छोड़कर शहर में बसने की होड़ है, सिवान में ग्र्राम्य संस्कृति का असर साफ दिखता है। हजारों मील की दूरी तय कर लोग सीधे गांव आते हैं। व्यावसायिक मजबूरी में भी जिन लोगों ने गांव छोड़ शहर में रहना शुरू किया वे भी हर मौके पर विदेशी मुद्रा बिहार गांव में दिखते हैं।

दिखती हैं बड़ी-बड़ी हवेलियां

जिले के चाहे जिस इलाके में जाएं, ऊंची हवेलीनुमा इमारतें दिखती हैं। ये बाहर बसे लोगों की मेहनत और गांव के प्रति उनके लगाव की मिसाल हैं। अपनी मिïट्टी के प्रति मोह का ही असर है कि दशकों तक खाड़ी देशों में रहने वाले भी सिवान में रहने की बजाय अपने गांव में रात बिताना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी कारण यहां गांवों की इमारतें शहरों से मुकाबला करती दिखती हैं। हुसैनगंज, बड़हरिया, महाराजगंज, पचरुखी, हसनपुरा, दारौंदा, दरौली, रघुनाथपुर, सिसवन जैसे प्रखंडों में एक नहीं दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां की इमारतें आंखें चुंधिया देती हैं।

बदल गई है आर्थिक स्थिति

विदेशों में बसे लोगों ने यहां की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। यहां की पूरी अर्थव्यवस्था को कभी मनीआर्डर इकोनॉमी कहा जाता था। यह स्थिति आज भी है। यहां वेस्टर्न मनी यूनियन और इस जैसी अन्य संस्थाओं के जरिए हर दिन लाखों की आवक होती है।

जब सीधे बैंक से लेनदेन होता था, सिवान जिले की बड़हरिया प्रखंड मुख्यालय स्थित कैनरा बैंक को ग्र्रामीण इलाकों में देश का सबसे धनी बैंक होने का खिताब हासिल हुआ था। इस प्रखंड के सिसवा, माधोपुर, छक्का टोला, भादा, बहादुरपुर, लकड़ी दरगाह, करबला, बालापुर , महमदा बाद जैसे गांवों की तस्वीर दस पंद्रह साल में बिल्कुल बदल गई है।

शहर में खुल गए ब्रांडेड स्टोर

कहते हैं कि पैसा बोलता है। मेहनत के बूते यहां के लोगों ने संपन्नता की नई इबारत लिख दी है। गांवों में पैसा आने का असर है कि शहर में विभिन्न ब्रांडेड कंपनियों के शोरूम खुल गए हैं। हर सुबह बड़ी संख्या में लोग जिला मुख्यालय आते हैं और जी भर खरीदारी कर शाम को वापस हो जाते हैं। सुबह-सुबह ग्र्रामीण इलाकों में आने वाली बसों में शापिंग के लिए आने वाली महिलाओं की संख्या भी चौंकाने वाली होती है।

अमूमन यह माना जाता है कि खाड़ी देशों में जाने वालों में मुस्लिम ही होते हैं पर सिवान के लोगों ने यह मिथक भी तोड़ा है। यहां मुस्लिम के साथ हिंदू युवक भी बड़ी संख्या में बाहर गए हैं। एक ही गांव के दर्जनों विदेशी मुद्रा बिहार हिंदू-मुस्लिम युवक बाहर जाकर वहां भी अपनी संस्कृति को यथासंभव जीवंत रखने की कोशिश करते हैं। सद्भाव का यह नजारा गांवों में साफ दिखता है।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 28.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 640.40 अरब डॉलर पर

मुंबई, 26 नवंबर (भाषा) देश का विदेशी मुद्रा भंडार 19 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 28.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 640.401 अरब डॉलर हो गया। रिजर्व बैंक के शुक्रवार को जारी आंकड़े के अनुसार इससे पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 76.3 करोड़ डॉलर घटकर 640.112 अरब डॉलर रहा था। तीन सितंबर, 2021 को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था। समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) में बढ़ोतरी हुई। एफसीए का विदेशी मुद्रा भंडार में महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, सप्ताह के दौरान एफसीए 22.5

रिजर्व बैंक के शुक्रवार को जारी आंकड़े के अनुसार इससे पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 76.3 करोड़ डॉलर घटकर 640.112 अरब डॉलर रहा था। तीन सितंबर, 2021 को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था।

समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) में बढ़ोतरी हुई। एफसीए का विदेशी मुद्रा भंडार में महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, सप्ताह के दौरान एफसीए 22.5 करोड़ डॉलर बढ़कर 575.712 अरब डॉलर हो गया।

डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाले विदेशीमुद्रा आस्तियों में विदेशीमुद्रा भंडार में रखे यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्रा के घट बढ़ को भी समाहित किया जाता है।

इस दौरान स्वर्ण भंडार का मूल्य 15.2 करोड़ डॉलर बढ़कर 40.391 अरब डॉलर हो गया।

समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से विशेष आहरण अधिकार 7.4 करोड़ डॉलर घटकर 19.11 अरब डॉलर रह गया।

अंतररराष्ट्रीय मुद्राकोष में देश का मुद्रा भंडार 1.3 करोड़ डॉलर घटकर 5.188 अरब डॉलर रहा।

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