आईटी क्षेत्र: विदेश में काम करने पर इन कंपनियों की कमाई बढ़ेगी।
दवा निर्यात: रुपया कमजोर होने से इस सेक्टर का निर्यात भी बढ़ेगा।
डॉलर के मुकाबले रुपये में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट, रुपया गिरने का मतलब क्या है, आम आदमी को इससे कितना नफा-नुकसान
भारतीय मुद्रा
अपूर्वा राय
- नई दिल्ली,
- 30 जून 2022,
- (Updated 30 जून 2022, 3:06 PM IST)
एक अमेरिकी डॉलर 79.04 रुपये का हो गया है,
भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. अमेरिकी डॉलर (Dollar) की तुलना में रुपया अपने रिकॉड निचले स्तर पर है. मतलब एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 79.04 रुपये पहुंच गया है. यह स्तर अब तक का सर्वाधिक निचला स्तर है. देश की आजादी के बाद से ही रुपये की वैल्यू लगातार कमजोर ही हो रही है. भले ही रुपये में आने वाली ये गिरावट आपको समझ में न आती हो या आप इसे गंभीरता से ना लेते हों, लेकिन हमारे और आपके जीवन पर इनका बड़ा असर पड़ता है.
आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है? रुपये की गिरती कीमत हम पर किस तरह से असर डालती है. आइए जानते हैं.
क्या होता है एक्सचेंज रेट
दो करेंसी के बीच में जो कनवर्जन रेट होता है उसे एक्सचेंज रेट या विनिमय दर कहते हैं. यानी एक देश की करेंसी की दूसरे देश की करेंसी की तुलना में वैल्यू ही विनिमय दर कहलाती है. एक्सचेंज रेट तीन तरह के होते हैं. फिक्स एक्सचेंज रेट में सरकार तय करती है कि करेंसी का कनवर्जन रेट क्या होगा. मार्केट में सप्लाई और डिमांड के आधार पर करेंसी की विनिमय दर बदलती रहती है. अधिकांश एक्सचेंज रेट फ्री-फ्लोटिंग होती हैं. ज्यादातर देशों में पहले फिक्स एक्सचेंज रेट था.
Highlights
- आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
- एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है
- US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है
Dollar Vs Rupees: US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। गुरुवार को शुरुआती कारोबार में रुपया में 51 पैसे की रिकॉर्ड गिरावट आई है। एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है। यह रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपये में गिरावट से एक ओर जहां व्यापार घाटा बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर जरूरी सामान के दाम में बढ़ोतरी होगी। इसका दोतरफा बोझ सरकार से लेकर आम आदमी पर पड़ेगा। आईए जानते हैं कि क्यों टूट रहा है रुपया और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
क्यों टूट रहा है रुपया
गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।
रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।
कहां तक टूट सकता है रुपया?
बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, भारतीय रुपया साल के अंत तक 81 प्रति डॉलर तक टूट सकता है। इस साल अब तक भारतीय रुपया 9% से अधिक लुढ़क चुकी है। डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल कीमतों में तेजी ने रुपया को कमजोर करने का काम किया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल आयात करता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है।
भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।
रुपये पर सीधा असर
व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।
देश के निर्यात में गिरावट ऐसे समय हुई है जब तेल आयात का बिल बढ़ता जा रहा है। भारत ने अप्रैल से अगस्त के बीच तेल आयात पर करीब 99 अरब डॉलर खर्च किए हैं जो पूरे 2020-21 की समान अवधि में किए गए 62 अरब डॉलर के व्यय से बहुत ज्यादा है। सरकार ने हाल के महीनों में आयात को हतोत्साहित करने के लिए सोने जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने, कई वस्तुओं के आयात पर पाबंदी लगाने तथा घरेलू उपयोग में एथनॉल मिश्रित ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास करने जैसे कई कदम उठाए हैं। इन कदमों का कुछ लाभ हुआ है और आयात बिल में कुछ नरमी जरूर आई है लेकिन व्यापक रूझान में बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है।
क्यों आती है रुपये में कमजोरी, डॉलर से ही क्यों होती है तुलना
Dollar Vs Rupee: रुपये में कमजोरी कई वजह से होती है। इसका सबसे आम कारण है डॉलर की डिमांड बढ़ जाना। अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल से निवेशक घबराकर डॉलर खरीदने लगते हैं। ऐसे में डॉलर की मांग बढ़ जाती है और बाकी मुद्राओं में गिरावट शुरू हो जाती है। शेयर बाजार की उथल-पुथल का भी रुपये की कीमत पर असर होता है।
रुपये की तुलना डॉलर से ही क्यों
वैश्विक स्तर पर अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। रुपये की डॉलर से ही तुलना क्यों होती है? इस सवाल का जवाब छिपा है द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ में। इस समझौते में न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।
डॉलर के मुकाबले एक महीने की ऊंचाई पर पहुंचा रुपया, जानिए क्यों आई मजबूती
डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती का रुख देखने को मिल रहा है. मंगलवार के शुरुआती कारोबार में रुपया डॉलर के मुकाबले एक महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. रुपया फिलहाल मजबूती के साथ 79 के स्तर से नीचे कारोबार कर रहा है. बदलती आर्थिक स्थितियों और शेयर बाजार के मजबूत प्रदर्शन की वजह से एक बार फिर विदेशी निवेश का रुख भारत की ओर हुआ है, जिससे रुपये को मजबूती मिली है. वहीं डॉलर में आई कमजोरी से भी रुपये को फायदा मिला है.
कहां पहुंचा रुपया
डॉलर के मुकाबले रुपया का पिछला बंद स्तर 79.03 था. आज रुपया इस स्तर के मुकाबले मजबूती के साथ 78.95 के स्तर पर खुला दोपहर के कारोबार तक रुपया 78.49 के स्तर तक मजबूत हुआ. दोपहर 12 बजे के करीब रुपया मजबूती के साथ 78.6 के करीब कारोबार कर रहा था. पिछले महीने ही डॉलर के मुकाबले रुपया 80.06 के अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंचा था. हालांकि जुलाई के अंत से रुपये में मजबूती का रुख देखने को मिल रहा है. दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों को भरोसा बढ़ रहा है. वहीं शेयर बाजार में भी पिछले कुछ समय से मजबूती देखने को मिल रही है और विदेशी निवेशकों की खरीदारी बढ़ रही है. कैपिटल का फ्लो एक बार फिर घरेलू मार्केट की तरफ होने से रुपये को सहारा मिला है. अपने निचले स्तरों पर इस साल अबतक डॉलर के मुकाबले रुपया 7 प्रतिशत से ज्यादा टूटा था. हालांकि अब नुकसान घटकर 6 प्रतिशत से नीचे आ गया है.
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अंतरराष्ट्रीय व्यापार
चूंकि बड़े निवेशक अपना जमा निकाल कर अमेरिका में निवेश कर रहे हैं। इसलिए, दुनिया भर के देशों में डॉलर की कमी होगी। इसका नतीजा हाई डिमांड के रूप में देखने को मिलेगा। यदि किसी देश में निर्यात ज्यादा और आयात कम होता है, तो उस देश के अधिशेष डॉलर जमा (surplus dollar deposits) में बढ़ोतरी होगी। इसलिए उन्हें बाजार से डॉलर खरीदने के लिए अपनी मुद्रा खर्च नहीं करनी पड़ेगी। इससे अमेरिकी डॉलर के मुकाबले उस देश की करेंसी की वैल्यू बढ़ेगी।
भारत के साथ ऐसा नहीं है
भारत का विदेशी व्यापार अपने पक्ष में नहीं है। हम जितनी रकम का निर्यात करते हैं, उससे ज्यादा रकम का आयात कर लेते हैं। आयात बिलों के निपटान के लिए हमारी करेंसी अमेरिकी डॉलर पर निर्भर है। यदि हम दुनिया में डॉलर की कमी के बीच डॉलर खरीदते हैं तो हमें अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए अपने भारतीय रुपये का ज्यादा भुगतान करना होगा। इससे देश की करेंसी पर और ज्यादा दबाव बढ़ता है।
मौद्रिक नीति का भी पड़ता है असर
रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति की वजह से आपके 500 रुपये के नोट का मूल्य हर दिन बदलता रहता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की मांग और आपूर्ति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए विभिन्न मुद्राओं को खरीदता और बेचता है। ताकि रुपये का मूल्य स्थिर रहे। इसके अलावा रेपो रेट या लिक्विडिटी रेश्यो जैसे मौद्रिक नीति परिवर्तन भी रुपये के मूल्य को प्रभावित करते हैं।
रुपये के मूल्य में बदलाव का आप पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
यदि आप विदेश में पढ़ाई की योजना बना रहे हैं, तो रुपये के मूल्य में गिरावट के साथ आपको उच्च शिक्षण शुल्क देना होगा। साथ ही विदेश डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है में रहने की आपकी लागत भी बढ़ जाएगी।
कैलेंडर वर्ष 2022 में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में 9.8% की गिरावट आई। ऐसे में हमारा आयात और महंगा होगा।
जब भी रुपये का मूल्य गिरता है, तो इसका असर आम आदमी की जेब पर भी पड़ता है। यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से देश के नागरिकों प्रभावित करता है।
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